लेखनी कविता -अंग अंग उसे लौटाया जा रहा था - कुंवर नारायण
अंग अंग उसे लौटाया जा रहा था / कुंवर नारायण
अंग-अंग
उसे लौटाया जा रहा था।
अग्नि को
जल को
पृथ्वी को
पवन को
शून्य को।
केवल एक पुस्तक बच गयी थी
उन खेलों की
जिन्हें वह बचपन से
अब तक खेलता आया था।
उस पुस्तक को रख दिया गया था
ख़ाली पदस्थल पर
उसकी जगह
दूसरों की ख़ुशी के लिए।